सारंगढ सहकारिता में सेटिंग राज! विवादितों की वापसी और अदृश्य ‘सुपर बॉस’ की चालें उजागर
विवादित और आपराधिक प्रकरण वाले ही बन रहे प्रबंधक!**

*सारंगढ सहकारिता में सेटिंग राज! विवादितों की वापसी और अदृश्य ‘सुपर बॉस’ की चालें उजागर**
**विवादित और आपराधिक प्रकरण वाले ही बन रहे प्रबंधक!**
सारंगढ़ खबर न्यूज,सारंगढ——नवीन जिला सारंगढ सहकारिता विभाग, धान खरीदी केंद्रों और समितियों में इन दिनों ऐसा भ्रष्टाचार, ऐसी सांठगांठ और ऐसा छुपा संचालन चल रहा है कि जिले की प्रशासनिक साख पर सीधा ग्रहण लग गया है। शिकायतें आती रहती हैं, जाँच होती रहती है, रिपोर्टें बनती रहती हैं-लेकिन नतीजा वही सालों से चल रहा खेल, जहाँ नियमों को मोड़ा जाता है, सेटिंग को साधा जाता है और तंत्र को पंगु कर दिया जाता है। जिले में अब यह तस्वीर साफ हो रही है कि यहाँ ईमानदार का काम करना मुश्किल है, लेकिन दोषियों का रास्ता बेहद आसान।
नवीन जिला सारंगढ में कुछ वर्षों से धान खरीदी में व सोसायटी प्रबंधकों द्वारा लाखो करोड़ो के घपला करने मामले में पूरे प्रदेश में अपना एक अलग पहचान बना चुका है।सारंगढ जिले में कुछ वर्षों से धान केंद्रों में बड़े रूप से धांधली व घपला देखने को मिला है जिसमे सर्वप्रथम धान सोसायटी गाताडीह,कोसीर,जशपुर,छिंद,दानसरा,सालर,उलखर,हरदी और कनकबीरा,बोहराबहाल के समिति प्रबंधक निराकार पटेल व उनके समिति के द्वारा लाखो रुपयों का गबन करने का मामला सामने देखने को मिला है जिसमे समिति प्रबंधक निराकार पटेल को जेल भी भेजा गया था।अब फिर से निराकार पटेल ने प्रशासन व सहकारिता विभाग में अर्जी लगाई है कि उनको फिर से सोसायटी प्रबंधक बनाया जाये।
**420 की ठगी करने वाला सालर प्रबंधक नरेश जायसवाल की शिकायत कलेक्टर से**
सारंगढ के सालर धान खरीदी केंद्र के प्रबंधक बनाए गए नरेश जायसवाल पर बेरोजगार युवाओं को नौकरी लगाने के नाम पर 420 ठगी करने का अपराध कोतवाली थाना में पंजीबद्ध है। इसके बावजूद उन्हें विभाग के बड़े अधिकारियों के द्वारा बड़ी राशि लेकर धान खरीदी केंद्र जैसी संवेदनशील व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंप दी गई। समिति प्रबंधक ने भाजपा के वर्तमान जनपद सदस्य साहू दानसरा के साथ लाखो रुपये लेकर 420 किया था जिसकी शिकायत भी किया गया जिससे सालर समिति प्रबंधक नरेश जायसवाल के ऊपर पुलिस ने कार्यवाही किया था। ऐसे शातिर अपराधी को धान सोसायटी जैसे संवेदनशील जगह के प्रबंधक पद से हटा कर जिला प्रशासन द्वारा कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए, पर सारंगढ जिले में लगभग धान सोसायटियों में अपराधी और फर्जी प्रबंधकों को फिर से बैठाया जा रहा है जिसके कारण शासन प्रशासन को हर वर्ष लाखो करोड़ो रुपयों का नुकसान उठाना पड़ता है और जिले के शातिर और चालाक सोसायटी प्रबंधक आसानी से बच जाते है।
जिले में यह स्थिति और भी चौंकाने वाली है कि जिन व्यक्तियों पर विवाद, निलंबन, गबन, ठगी और आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं—वही लोग फिर से प्रबंधक और प्रभारी प्रबंधक बनकर बैठ गए हैं। उदाहरण के तौर पर सालर प्रबंधक नरेश जायसवाल पर भोले-भाले बेरोजगार युवकों से नौकरी लगाने के नाम पर ठगी का मामला कोतवाली थाना में दर्ज है। कुछ समय तक फरारी काटने के बाद आज वही व्यक्ति दो-दो समितियों – सालर और बोहरा बहाल का प्रभारी बना बैठा है।यह कैसे संभव हुआ कौन देता है ऐसा संरक्षण? यह वही प्रश्न हैं जो पूरे विभाग की विश्वसनीयता पर तीखे सवाल खड़े करते हैं।
**जाँच का झुनझुना और भ्रष्टाचार की जुगलबंदी**
हर साल वही पुरानी पटकथा।
शिकायतें… जाँच… और फिर खानापूर्ति। बीते वर्ष कलेक्टर द्वारा गठित संयुक्त टीम – डीएमओ, खाद्य, राजस्व और सहकारिता अधिकारी जब बोहरा बहाल खरीदी केंद्र पहुँचे, तो पाया कि मौके पर न धान,न स्टॉक प्रबंधक निराकार पटेल को समय भी दिया गया, पर उसने भरपाई की जगह मामले को हल्के में लिया। लेकिन कहानी यहीं दिलचस्प हो जाती है – जैसे ही खाद्य विभाग ने एफआईआर दर्ज कराई, उसी स्थान से अचानक धान प्रकट हो गया! जाँच टीम नहीं देख सकी,कलेक्टर की टीम नहीं पा सकी, लेकिन एफआईआर होते ही डीएमओ को धान मिल गया और तुरंत डीओ काट दिया गया।
इतनी तो तेजी आपदा राहत में भी नहीं दिखती! सबसे अविश्वसनीय बात – राइस मिलर ने उसी समय वह धान उठा भी लिया। जैसे पहले से सब तय हो।
जैसे पूरा खेल पहले से स्क्रिप्टेड हो।
*सवाल जनता का—*
धान था कहाँ? या एफआईआर के बाद कहा से मिला। यह जाँच है या पहले से लिखी कहानी?
*विभाग का छुपा संचालक — कौन है जीवन साहू?*
अब सबसे गंभीर खुलासा।सहायक आयुक्त को दिए गए आवेदन में सामने आया कि विभाग में वर्षों से जीवन साहू नाम के एक व्यक्ति का ऐसा प्रभाव है जिसे समझना ही मुश्किल है। वह किस पद पर है, कोई नहीं बता पाता। उसकी नियुक्ति कहाँ है वह अस्पष्ट है।विभागीय अधिकार क्या है पता नहीं। लेकिन फिर भी – प्रबंधक चयन, धान उठाव, फाइलों की दिशा जाँच कौन करेगा – सब उसके इशारे पर चलता दिखता है। कर्मचारी ही नहीं, कई अधिकारी भी दबे स्वर में मानते हैं विभाग जीवन साहू चलाता है, आदेश कोई भी दे,अंतिम फैसला वहीं होता है। ऐसा असर…ऐसी पकड़…और ऐसा ‘अदृश्य शासन’… यह स्थिति न केवल असामान्य है, बल्कि खतरनाक भी है।
*लोगों का सीधा सवाल—*
क्या विभाग के ऊपर कोई बाहरी ‘सुपर बॉस’ बैठा है।
क्या सरकारी तंत्र किसी निजी कब्जे में चला गया है।
*प्रशासन की छवि धूमिल — जनता का धैर्य टूट रहा*
विवादित नियुक्तियाँ…उलटी जाँच रिपोर्टें…गुप्त संचालन…और अधिकारियों की सेटिंग – इन सबने जिला प्रशासन की छवि पर बड़ा धब्बा लगा दिया है।
लोग अब खुलकर कहने लगे हैं कि यहाँ ईमानदार को सजा मिलती है, और सेटिंग वालों को सत्ता।
*जनता का गुस्सा तेज और स्पष्ट है—*
कब खत्म होगा यह संरक्षण?
कब होगी वास्तविक कार्रवाई?
कब हटेंगे विभाग पर मंडराते ‘छुपे प्रभाव’?
*जिले का भविष्य दाँव पर*
सहकारिता से लेकर धान खरीदी तक, पूरा तंत्र भ्रष्टाचार + दबाव + सांठगांठ के मॉडल पर चल रहा है। यदि शासन ने तुरंत कार्रवाई नहीं की, तो विभाग की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो जाएगी और ईमानदार लोग हमेशा के लिए हाशिए पर चले जाएंगे


